का (फ़ोन पर नंबर डायल करता है, लाइन कट करता है, डायल करता है, फिर कट करता है, बहुत देर तक यही उपक्रम चलता है। कुछ समय बाद एक लम्बी सांस भर कर फ़ोन को एक किनारे पर रख देता है। झक मार कर दुबारा फ़ोन उठाता है। नंबर डायल करता है, और दूसरी तरफ से 'की' फ़ोन पर आती है)
की: हेल्लो ..हेल्लो ..हाँ मालूम है कि तुम ही हो। चलो ट्रैफिक जाम मत करो और बताओ कि क्या सोच कर फ़ोन किया
का ('की' का आत्मविश्वास देख कर थोडा घबरा जाता है, गला साफ़ करते हुए): वो ..दरअसल .. हाँ ! तुम घर पहुँच गयी न ठीक तरह से !
की (कुटिल मुस्कान भरी आवाज़ के साथ): मेरा ख़याल है तुम ही घर तक छोड़ कर गए थे। पाँच दफे पीछे पलट कर मुस्कुराए थे और दस दफे हाथ हिला कर गुडबाय किया था। खैर ! इसके बावजूद मैं सही-सलामत घर पहुँच गयी हूँ (हंसने लगती है)
का: (मायूस आवाज़ के साथ) ओह !
का: (चुप)
की: (चुपचाप मुस्कुराती है)
का: अच्छा ठीक है, मैं फ़ोन रखता हूँ अब।
की: ओ के ! बाय ! गुड नाईट
का: (चुप)
की: क्या हुआ?
का (थोडा चिढ़ते हुए): तुम क्या हमेशा मेरे मज़े लेने की फ़िराक में रहती हो ! देख कर तो इतनी बेवक़ूफ़ नहीं लगती कि कुछ समझती ही ना हो !
की(थोडा कुढ़ते हुए): तुम क्या हमेशा से दूसरों को मुफ्त का एंटरटेनमेंट देना पसंद करते हो ! लेट मी टेल यू कि तुम बहुत ही घटिया एक्टिंग स्किल्स रखते हो
का (थोडा परेशान होते हुए): क्या मतलब है इसका ! ओ के ! आई ऍम सॉरी
की: यस यू शुड। मैं क्या कोई फेस रीडर हूँ जो सब जान जाऊँगी और खुलासे करने लगूंगी और हूँ भी तो क्या ठेका ले रखा है सब कुछ बोलते रहेने का ! खुद क्यूँ नहीं बोलते कुछ !
का (धीमी आवाज़ में) क्या बोलूं ! (थोडा अटकते हुए) जैसे तुम जानती ही नहीं।। आई मीन , तुम जानती हो कि हम क्यूँ मिले आज ! मैं ....कितना पसंद करता हूँ तुम्हें ...पिछले एक साल से इतनी बातें की हमने मगर मैं कभी कह नहीं पाया।
की: तो आज कैसे कह पाए !
का: वो ..तुमने जब आज अचानक हाथ पकड़ा मेरा तो मुझे लगा ... लगा कि कह देना चाहिए ...शायद तुम भी यही सुनना चाहती हो ...देखो गलत मत समझना मुझे ! मैं चाहता हूँ तुम्हे। पिछले एक साल में कई दफे मैं तुम्हारे साथ चांदनी रात में समंदर किनारे चहलकदमी करने के सपने देखता हूँ ..मैं ..
की: हाँ ! मैं भी पिछले दो सालों से तुम्हारे साथ सोने के सपनें देखती हूँ . अक्सर
का: (चौंक कर हल्ख़ के नीचे थूक गटकता है और 'की' को बीच में टोक कर) क्याअअआा ?
की (भरपूर मासूमियत के साथ): हाँ ! तुम्हे क्या लगा ! हर लडकी पहली डेट में ही लड़के का हाथ पकड़ कर उसके कंधे पर सर टिका कर उसकी बेवकूफियों पर हँसना चालू कर देती है !
का: ओह ! (चुप) अच्छा ! (चुप) ओ के ! ह्म्म्म
की (हँसते हुए) : लाइब्रेरी में सर झुका कर डूबे रहा करते थे तुम। बहुत बार मन हुआ कि तुम्हारे पास आकर धीमे-धीमे तुम्हारे कंधे सहला दूं। तुम्हारी चोरी से देखने की आदत से बड़ी कोफ़्त होती थी इसीलिए तुम्हे हिम्मत देनी ज़रूरी थी। तुम्हारी ज़िन्दगी में आंखिरी 'की' नहीं बनना मुझे मगर पहली "की" , ज़रूर बनना था ..यू नो ! एक चुनौती की तरह लगता है, तुम्हे किताबों से अलग कर अपनी आँखों में डुबो देना ..और फिर आज शाम जब तुमने कहा "आपकी आँखें बहुत गहरी लगती हैं" तो लगा, मानो कुछ अघटित सा घटित हुआ पहली बार . जैसे ..! हेलो ! हेल्लो .. सुन रहे हो न तुम !
का: अअ आ आ ...हाँ सुन रहा हूँ . मगर समझ नहीं पा रहा हूँ
की (हँसते हुए) : रिश्तों में दिमाग जितना कम लगे उतना ही बेहतर है।
का: थोड़ा अजीब है ये सब .. लगता है, जैसे आपकी चुनौती ने मेरी चुनौती को बहुत छोटा कर दिया है, जैसे ..जैसे मुझे मेरी आदमियत से थोडा अलग कर दिया है ...मेरे लिए ये सब आसान नहीं है
की: हाँ ! औरत की ईमानदारी को पचा पाना आसान नहीं है (हंसती है) देखिये दिमाग न लगाइए ज्यादा। बस प्यार कीजिये। कम से कम हम लड़कियों से इतना तो सीखिए (धीमे से फ़ोन पर किस करती है) आई लव यू !
का: ह्म्म्म ... थोडा वक़्त दीजिये पचाने के लिए ..मेरा हाजमा इस केस में अक्सर गड़बड़ रहता है . आई लव यू टू
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