शनिवार, 19 जनवरी 2013

तू-तू मैं-मैं

तू: अच्छी लग रही हो तुम आज

मैं : थैंक यू

तू: कहाँ थी ? बहुत दिनों से नज़र नहीं आयी !

मैं: यहीं तो थी। मैं तो हर रोज़ छत पर शाम को टहलने आती हूँ। आपने देखा नहीं कभी !

तू: हाँ याद आया ! परसों देखा था

मैं: क्यूँ कल भी तो रेडियो पर जोर जोर से गाना बजा के सुन रहे थे। मैंने देखा आप खिड़की पर बैठे थे

तू: ओह हाँ !

तू : (चुप)

मैं:  (चुप)

तू: (ख़लाओं में देखने लगता है)

मैं: अच्छा मैं चलती हूँ अब

तू: अच्छा ठीक है

तू: अरे सुन ! मैं एक बात बताना तो भूल ही गया

मैं: हाँ-हाँ दो दिन बाद बाबा की तन्ख्वा मिल जाएगी। अम्मा ने बोला है दूकान का हिसाब पूरा कर देंगे।

तू: अरे दूकान की बात नहीं थी। मैं तुझसे प्यार करने लगा हूँ शायद। अभी याद आया।

मैं: शायद ! याद आया !

तू: हाँ-हाँ ठीक है, अब तू धरम-करम, रीति रिवाजों का वास्ता मंत देना। मुझे पता है कि तू ये सब नहीं मानती

मैं: अच्छा

तू: हाँ तो ठीक है। आज से मैं और तू प्यार करेंगे। मैं तेरा ख़याल रखूँगा अच्छे  से। अम्मा को कह देना, इस

    महीने की साबुन की टिक्की और तेरा 'फेयर एंड लवली' फ्री। अभी तो सिर्फ इतना ही कर सकता हूँ। जिस

    दिन बाबूजी पूरी दूकान सौंप देंगे, उस दिन से तेरा घर मेरा घर एक बात। ठीक है !

मैं: (सोचते हुए) ये सब तो ठीक है मगर तू जो अगर कभी मर गया तो !

तू: तो तुझे कौन सा बेवा बन के रहना है। मोहल्ले का हर लौंडा तो तेरे पीछे है। बस मेरे मरने की ही तो देर है

मैं: अच्छा ! ज़रा  संतरे की गोली दे ना ढेर सारी और थोड़ी मिश्री भी दे।

तू: सात बजे आना , बाबूजी दूकान पर नहीं होंगे तब और सुन अगले मंगल को हनुमान मंदिर के पीछे

     मिलना

मैं: ठीक है। हनुमान मंदिर क्यूँ !

तू: उसके पीछे कोई नहीं रहता। अब थोडा सा प्यार करना तो बनता है ना !

मैं: (सोचते हुए) देखती हूँ। अम्मा घर पर नहीं रहेगी तो ही आऊँगी ।

तू: ('मैं' का हाथ पकड़ लेता है) मैं तेरे हाथ को "किस" दे दूं !

मैं: (आँख बंद करते हुए) गाल पर दो जल्दी से। ऐसे ही एक साल बर्बाद कर दिया बोलने में।

तू: (उसे हैरानी से देखता है)

मैं: क्या है ! दे न जल्दी से !

दोनों पल भर के लिए काँपते  हैं। एक दुसरे की तरफ देखते हैं, मुस्कुराते हैं। 'तू', 'मैं' को संतरे की गोलियां और

ढेर सारी मिश्री देता है। 'मैं' उसे पैसे दिए बगैर मुस्कुरा के चली जाती है






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