वो भूखा था और भूखा भी कोई ऐसा-वैसा नहीं जनाब ! जन्म-जन्मान्तरों की भूख को पेट की अंतड़ियों से चिपकाये बरसों से चुपचाप गलियों में गुमसुम सा लुका-छुपा घूमता फिरता था वो. कोई पागल समझा तो कोई आवारा, किसी ने भिखारी समझ के अनदेखा कर दिया तो किसी ने अनाथ और ठुकराया जान कर कभी-कभार तरस खा लिया. दूसरी तरफ वो दुनिया से बेखबर अल्लाह का सगा बना घूमता. किसी से भी कुछ न कहता और भला कहे तो क्या कहे या कहे तो क्यूँ कहे भला !
वो शिकायत तब करता न जब उसे दुनिया की निगाहों से खुद को देखने की फुर्सत मिलती ! उसने तो जीवन को ऐसे ही देखा, जिया और जाना. उसके लिए ये जीवन की सच्चाई- वचाई वगैरह जैसा कोई जुमला या फलसफा नहीं था. उसके लिए तो यही जीवन था. सुन्दर, सरल और सिमटा हुआ जीवन. उसकी छोटी सी दुनियावी किताब थी जहाँ उसने अपनी आँखों की स्याही में अपने दिल को डूबा-डूबा के यहाँ-वहाँ हर घर की दीवार पर छाप दिया और पागलों की तरह बहकते हुए चलता रहा और हँसते हुए गाता रहा.
वो शिकायत तब करता न जब उसे दुनिया की निगाहों से खुद को देखने की फुर्सत मिलती ! उसने तो जीवन को ऐसे ही देखा, जिया और जाना. उसके लिए ये जीवन की सच्चाई- वचाई वगैरह जैसा कोई जुमला या फलसफा नहीं था. उसके लिए तो यही जीवन था. सुन्दर, सरल और सिमटा हुआ जीवन. उसकी छोटी सी दुनियावी किताब थी जहाँ उसने अपनी आँखों की स्याही में अपने दिल को डूबा-डूबा के यहाँ-वहाँ हर घर की दीवार पर छाप दिया और पागलों की तरह बहकते हुए चलता रहा और हँसते हुए गाता रहा.
कहीं कोई रोटी का टुकड़ा दिखा तो प्यार से आने सवा आने बराबर दांतों से चबा कर खा लिया. दुअन्नी भर की जलेबी को रसमलाई समझ कर खाया और रस-मलाई को शाही टुकड़ा समझ कर पचा लिया. रात सोने से पहले अशर्फी भर की डकारें मार ली और नींद एडियों तक तान कर मुफ्त के खर्राटे मारे. कहने का मतलब है कि वो तृप्त था. छन भर के सुखों का स्वाद उसकी आत्मा तक को लबालब कर डालता. आह ! आनंद ये नहीं तो क्या है !
मगर कमबख्त उस ऊपरवाले की गुलेल पर किसका ज़ोर चला है ! दे मारी जो उसने एक दिन तो भूखे की झोली में शाही दावतों का अंबार लग गया और उसने जाना कि 'आनंद' के आगे भी कोई 'परमानन्द' नामक प्राणी निवास करते हैं . इकतारे पर यही एक धुन बजती गयी और बरसों का भूखा खाता गया और खाता ही गया.
"तेरे इश्क नु नचाया करके थैय्या थैय्या " . बड़े मियां जिंदगी का ऐसा अजूबा आज तक तो न दिखा कि कल तक जो भूखे को रोटी का टुकड़ा इमाम की शाही दावतों का ज़ायका देता था आज मुई इन दावतों पर दावतों से कोई लज्ज़त ही नहीं है..वो बात अलग है कि शुरुआत में यहाँ भी किस्से तो उतने ही मजेदार थे मगर अब लज्ज़त जाती रही.. एकबारगी उसने सोचा कि क्यूँ न पीछे मुड़कर उसी रास्ते पर वापस लौटा जाये ! मगर जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो सन्न रह गया. काजल के धुंए सरीखा एकदम घुप्प अँधेरा. उसका दिल सिहर उठा और एक धक् के साथ भीतर छुप कर बैठ गया. अब क्या करे ! उसने पागलों की तरह दावतों पे दावतें लेनी शुरू कर दी मगर कमबख्त कोई था जो देता भी था और हाथ भी खींच लेता था.
वो जिसने आज तक कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारे, आज किसी के पाँव पकड़ कर गिड़गिड़ाता था, रात-रात सर पटक के रोता था. और फिर एक दिन जब कोई हल न निकला तो इमाम ने कहा:
मगर कमबख्त उस ऊपरवाले की गुलेल पर किसका ज़ोर चला है ! दे मारी जो उसने एक दिन तो भूखे की झोली में शाही दावतों का अंबार लग गया और उसने जाना कि 'आनंद' के आगे भी कोई 'परमानन्द' नामक प्राणी निवास करते हैं . इकतारे पर यही एक धुन बजती गयी और बरसों का भूखा खाता गया और खाता ही गया.
"तेरे इश्क नु नचाया करके थैय्या थैय्या " . बड़े मियां जिंदगी का ऐसा अजूबा आज तक तो न दिखा कि कल तक जो भूखे को रोटी का टुकड़ा इमाम की शाही दावतों का ज़ायका देता था आज मुई इन दावतों पर दावतों से कोई लज्ज़त ही नहीं है..वो बात अलग है कि शुरुआत में यहाँ भी किस्से तो उतने ही मजेदार थे मगर अब लज्ज़त जाती रही.. एकबारगी उसने सोचा कि क्यूँ न पीछे मुड़कर उसी रास्ते पर वापस लौटा जाये ! मगर जैसे ही पीछे मुड़कर देखा तो सन्न रह गया. काजल के धुंए सरीखा एकदम घुप्प अँधेरा. उसका दिल सिहर उठा और एक धक् के साथ भीतर छुप कर बैठ गया. अब क्या करे ! उसने पागलों की तरह दावतों पे दावतें लेनी शुरू कर दी मगर कमबख्त कोई था जो देता भी था और हाथ भी खींच लेता था.
वो जिसने आज तक कभी किसी के आगे हाथ नहीं पसारे, आज किसी के पाँव पकड़ कर गिड़गिड़ाता था, रात-रात सर पटक के रोता था. और फिर एक दिन जब कोई हल न निकला तो इमाम ने कहा:
"नामुराद मैंने तुझ पर तरस खाया. तेरी आँखों के भोलेपन और हंसी ने मुझे लूट लिया था. मैं तेरे उन्माद को देख कर इतना तड़प कर रह जाता कि रात और दिन मुझे बस तेरे ही ख़याल आने लगे. मुझे लगा कि ज़िन्दगी तेरे बगैर अधूरी और बेजान है. मैं तेरी आवारा गलियों में तेरे साथ बाहें पसारे तेरे आग़ोश में घूमना चाहता था. मगर तूने मुझे धोखा दिया. तू जो इतना खुशमिजाज़ और बेफिक्र दिखता था, तू जिसकी हँसती आँखें मुझे क़ैद करके रखती थी, तू वो न था. तू तो निहायत ही खोखला सा बेमानी आदमी है. तू मेरी दावतों और मेरी हैसियत से भरी मुहोब्बत के लायक नहीं है..तू चला जा कहीं दूर..अपनी उन्ही गलियों में ..तुझे मेरे शान औ शौकत से भरी ज़िंदगी हैरान नहीं करती..तेरी दीवानगी में मेरे दीन के लिए कोई जगह ही नहीं है..मैं तुझे चाहकर भी खुश नहीं कर सकता..चाह कर भी तेरा जन्मों से भूखा पेट नहीं भर सकता. रकीब तुझे मेरी नहीं किसी और की ज़रुरत है. इस से पहले कि मेरा दिल दर्द से फट पड़े, तू चला जा, इसी वक़्त चला जा"
और वो डबडबाई आँखें लिए कैसे कहे कि उसे तो कभी भी किसी की ज़रुरत ही न थी ..उम्र के आखिरी पड़ाव में उसने जाना कि वो इस दुनिया के लिए था ही नहीं..कि जिसे तलाशने के लिए लोग चोटियों पर जाकर कई सालों तक ख़ुद को धुआं करते हैं, वो मुहोब्बत और वो सुकून दिल के भीतर तलक ठूंस कर उसे इस दुनिया में भेजा गया था. और चूँकि उसे इस दौलत को पचाना था तो उसके छोटे से पेट को खाली रखा गया.
और वो डबडबाई आँखें लिए कैसे कहे कि उसे तो कभी भी किसी की ज़रुरत ही न थी ..उम्र के आखिरी पड़ाव में उसने जाना कि वो इस दुनिया के लिए था ही नहीं..कि जिसे तलाशने के लिए लोग चोटियों पर जाकर कई सालों तक ख़ुद को धुआं करते हैं, वो मुहोब्बत और वो सुकून दिल के भीतर तलक ठूंस कर उसे इस दुनिया में भेजा गया था. और चूँकि उसे इस दौलत को पचाना था तो उसके छोटे से पेट को खाली रखा गया.
जिसने ताउम्र नशे को जाना ही नहीं उसे मैखाने में सालों-साल डुबो कर धकिया दिया ! ये लोग जो बगैर बुलाये उसके लिए आते गए और जाते गए..उनके साथ-साथ पीछे वापस लौटने के सारे रास्ते भी धुंधलाते गए हैं.. उसका पेट भर कर दुनिया ने उसके दिल पर लात मार दी..
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