अलमारी के एक कोने में पड़ा हुआ वो इंतज़ार कर रहा था, एक ख़ास मौके का. ये मजबूरी है उसकी .उसे एक ख़ास मौके पर ही याद किया जाता है.
तो भी उसे कोई गिले-शिकवे नहीं इस 'दो पल की ज़िन्दगी' से....आह ! वो शायराना हो के सोचने लगा है. यकायक ही उसके होठों के एक कोने पर एक दबी मुस्कान खेल गयी. 'दो पल की ज़िन्दगी' ! ..यूँ तो पिछले पाँच सालों से वो ज़िंदा है ..मगर ज़िन्दगी के लिए उसका हिसाब-किताब बिलकुल सीधा सा है..जब, जिस वक़्त उसकी सिहरन वो अपनी साँसों में महसूस करे, ज़िन्दगी उसके लिए तभी जिंदा होती है..बाकी का वक़्त वो सिर्फ खुली आँखों में सो रहा होता है..अपनी क़ब्र में चैन की साँसे लेता हुआ उस दो पल की ज़िन्दगी को जीने में वो सचमुच सदियाँ बिता सकता है...
उफ!! उसे फिर अचानक ही एक अजीब सी सिहरन हो आई है..उसका रोम रोम जैसे जाग उठा है..घर में हलचल है ...कई दिनों बाद ये एक लम्हा आया है ..वो बैचैन हो उठा..कैसे काबू करे खुद को !..नहीं बिलकुल नहीं!! वो हरगिज़ नहीं चाहता कि आने वाले लम्हों का आधा ज़ायका बस महसूस करने में ही गवाँ दे.. नहीं ! उसे पूरी वसूली करनी है, एक-एक पल की..कोई लालच नहीं...एक शोख़ हंसी उसकी आवाज़ में खेल गयी..उसे अचानक ही उस महक की याद हो आयी जो उसे, उसके अधूरेपन से निजात दिला देती है..उस जिस्म को छू भर लेने का सुकून तक कितना गहरा उतरता है...शायद ये एक फर्क है, औरत में ..हर रेशे-रेशे तक में वो अपनी छुअन का एहसास डाल देगी..
उफ!! उसे फिर अचानक ही एक अजीब सी सिहरन हो आई है..उसका रोम रोम जैसे जाग उठा है..घर में हलचल है ...कई दिनों बाद ये एक लम्हा आया है ..वो बैचैन हो उठा..कैसे काबू करे खुद को !..नहीं बिलकुल नहीं!! वो हरगिज़ नहीं चाहता कि आने वाले लम्हों का आधा ज़ायका बस महसूस करने में ही गवाँ दे.. नहीं ! उसे पूरी वसूली करनी है, एक-एक पल की..कोई लालच नहीं...एक शोख़ हंसी उसकी आवाज़ में खेल गयी..उसे अचानक ही उस महक की याद हो आयी जो उसे, उसके अधूरेपन से निजात दिला देती है..उस जिस्म को छू भर लेने का सुकून तक कितना गहरा उतरता है...शायद ये एक फर्क है, औरत में ..हर रेशे-रेशे तक में वो अपनी छुअन का एहसास डाल देगी..
किस क़दर सहेज कर उठाया जाता है उसे. और फिर उसे समेट कर, वापस रखने से पहले जब वो एक आखिरी बार उसे धीरे से अपने हाथों में ले कर, उसकी एक भरपूर महक को अपनी साँसों से खींच कर भीतर डाल लेती है..तब उन कुछ लम्हों में वो सिर्फ लिबास नहीं रहता. कुछ और हो जाता है. कुछ और! हाँ जाने क्या से क्या हो जाता है !..उसे खुद पे एक अजीब सा एतमाद होने लगता है , ग़ुरूर होने लगता है..उसे लगता है की वो पनाह दे रहा है एक जिस्म को , उसकी उम्र को ..उसके भीतर झूलते न जाने कितने हिचकोलों को वो पल भर में ही संभाल लेता है..शुक्र है! वो एक औरत की अलमारी का हिस्सा है..उसे रश्क़ सा हो आया खुद पर ही..
चहल-पहल कुछ बढ सी गयी है ..थोड़ी ही देर बाद दो हाथ कुछ ढूँढ़ते हुए उसकी ओर बड़े ..उसकी धड़कनों मानो उसके गले के अन्दर अटक गयी....जाने कौन सी दुआ मांगने लगता है वो इस वक़्त ! तभी किसी ने टोका:
"अरे बस करो! इतने साल से यही लिबास पहन रही हो ..अब तो मेहमानों को तक इसका रंग याद हो चुका है."
चहल-पहल कुछ बढ सी गयी है ..थोड़ी ही देर बाद दो हाथ कुछ ढूँढ़ते हुए उसकी ओर बड़े ..उसकी धड़कनों मानो उसके गले के अन्दर अटक गयी....जाने कौन सी दुआ मांगने लगता है वो इस वक़्त ! तभी किसी ने टोका:
"अरे बस करो! इतने साल से यही लिबास पहन रही हो ..अब तो मेहमानों को तक इसका रंग याद हो चुका है."
"मगर तुम्ही ने इतने प्यार से दिया था, क्या करूँ एक अजीब सा जुड़ाव हो गया है ."
"उफ़ ! तुम महिलाओं की भावुकता का कोई अंत नहीं !"
"अच्छा ठीक है.. नाराज़ मत हो , तुम्ही बोलो क्या पहनूं ?"
"कुछ भी , मगर इस पुराने नमूने को अलमारी से बाहर उठा के फेंकों .."
"अरे फेंकने की बात क्यूँ कर रहे हो ! नहीं पहनूंगी ..बस पड़ा रहने दो यहीं.."
"क्यूँ पड़ा रहे ! इस से तो अच्छा है कि किसी के काम आ जाये."
"ठीक है किसी को दे देती हूँ ..अब खुश !"
"हम्म ...ठीक है, ज़ल्दी से तैयार हो कर आ जाओ..यूँ ही बहुत देर हो चुकी है.."
एक लम्बी साँस भर कर हाथ अलमारी की ओर बड़े और ठन्डे मन से लिबास को निकालने की कोशिश की ही थी कि वो जाने अलमारी की किस पुरानी कील पर जा अटका ..थोडा जोर लगा के खींचा तो चीरे जाने जैसी अजीब सी आवाज़ आयी ..."
एक लम्बी साँस भर कर हाथ अलमारी की ओर बड़े और ठन्डे मन से लिबास को निकालने की कोशिश की ही थी कि वो जाने अलमारी की किस पुरानी कील पर जा अटका ..थोडा जोर लगा के खींचा तो चीरे जाने जैसी अजीब सी आवाज़ आयी ..."
"ओह! ये भी गया काम से..आज का दिन ही नुक्सान से शुरू हुआ !"
थोड़ी देर तक उसे टकटकी लगा कर देखा गया . फिर हाथों में लेकर एक बार फिर से उसकी बासी महक को ताज़ी साँसों के साथ सीने में उतारा गया..और आखिरकार हल्के मन से उसे दुबारा पुराने कपड़ों के नीचे तहा के रख दिया गया..
थोड़ी देर तक उसे टकटकी लगा कर देखा गया . फिर हाथों में लेकर एक बार फिर से उसकी बासी महक को ताज़ी साँसों के साथ सीने में उतारा गया..और आखिरकार हल्के मन से उसे दुबारा पुराने कपड़ों के नीचे तहा के रख दिया गया..
"अब तो देने के काम का भी नहीं रहा.."
आवाज़ धीमे-धीमे दूर होती गयी..
एक बोझ के नीचे दबा हुआ लिबास गहरे में सोच रहा था :
"उम्मीदें कम हो जायें तो शायद जीना ज़्यादा आसान हो जाता है
आवाज़ धीमे-धीमे दूर होती गयी..
एक बोझ के नीचे दबा हुआ लिबास गहरे में सोच रहा था :
"उम्मीदें कम हो जायें तो शायद जीना ज़्यादा आसान हो जाता है