शनिवार, 26 नवंबर 2011

स्पंदन

छू लो चाहे झकझोर दो हमें

चींटी तक नहीं रेंगती बदन पर.

जिसको पल पल रोम-रोम में

चिंकोटी सा काटते रहे तुम

पैदा होने से अब तक ठहर-ठहर के जांचते रहे तुम

जिसको कभी दबाते कभी मारते रहे तुम

कभी नोचते, कभी चूसते, कभी आस्वादन के परजीवी सा भोगते रहे तुम

नस-नस में उतर कर सोखते रहे तुम

आज चाहो भी तो ढूँढ नहीं पाओगे

नब्ज़ टटोलो तो सकते में आ जाओगे

एक दिन मेरी तरह मर-मरा जाओगे

संवेदना की मौत पे

चुप्पी साधना सीख ले नासपीटे