चींटी तक नहीं रेंगती बदन पर.
जिसको पल पल रोम-रोम में
चिंकोटी सा काटते रहे तुम
पैदा होने से अब तक ठहर-ठहर के जांचते रहे तुम
जिसको कभी दबाते कभी मारते रहे तुम
कभी नोचते, कभी चूसते, कभी आस्वादन के परजीवी सा भोगते रहे तुम
नस-नस में उतर कर सोखते रहे तुम
आज चाहो भी तो ढूँढ नहीं पाओगे
नब्ज़ टटोलो तो सकते में आ जाओगे
एक दिन मेरी तरह मर-मरा जाओगे
संवेदना की मौत पे
चुप्पी साधना सीख ले नासपीटे